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Ek insaan short poetry
Published: 3 years agoCategory:
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इंसानो का इंसानो से इंसानियत का वास्ता ही कुछ और है, हर एक इंसान का इस दुनिया में रास्ता ही कुछ और है,
मूर्खो से मूर्खो की बाते मूर्खो को समझ न आयी एक मुर्ख खुसिया के बोला क्या तू समझा मेरे भाई?
अन्धो से अन्धो का तो अजीब ही नाता है, हर अँधा दूसरे अंधे के नैनो की गहराही में खो जाता है !
ऐसे इस घमासान में बेहरे भी कुछ कम नहीं इतराते , समझे सुने मुमकिन नहीं पर गर्दन जरूर हिलाते।
गूंगे न जाने शब्दों से रिश्ता कैसे निभाते है, केवल होठों को मिटमिट्याते हुए कैसे वे बतियाते है?
कर से अपंग भी लालसा में झूल जाते है, हाय रे ये आलसी जानवर बिस्तर न छोड़ पाते है!
सयाने इतराते कहते लंगड़े घोड़े पर डाव नहीं लगाते, और दूसरे ही मौके पर दुसरो के तरक्की में रोड़ा अडकते।
किस्मत के मारो का तो क्या कहना, ये दिमाग से पैदल होते है, सामर्थ्यवान इस देश की उपज है मानो सारा कुछ यही सहते है।
इससे तो अच्छा सचमें इनके आँख, कान, जबान, पैर और हाथ न होते, दिमाग तो फिर भी ठीक था पर दिल को मन में संजोते,
ऐसे इस इंसान का फिर भी जग में उद्धार जरूर होता, इंसान फिर इंसानियत से कभी वास्ता न खोता।
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Narender Kumar . 3 years ago
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